क्या था कुर्मी चेतना मंच जिसने नीतीश को लेकर आया मुख्यमंत्री तक का सफर….

0
Spread the love

Desk : नीतीश औऱ उपेन्द्र कुशवाहा के बिच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा.. ऐसा कहा जा रहा हैं की कुर्मी कुशवाहा का वोट बंट गया हैं.साथ ही आजकल लव कुश समीकरण की भी तो बात हो रही हैं. तो आइए आपको आपको बताते हैं की यह लव कुश समीकरण क्या हैं. साथ ही आपको बताएंगे कि आखिर कैसे नीतीश कुमार की राजनीती में दूसरी शुरुआत हुई थी. औऱ कुर्मी चेतना रैली क्या थी.दरअसल नीतीश कुमार के बेहद करीबी नीरज कुमार बताते हैं कि कुर्मी चेतना महारैली में शामिल होने की पटकथा तब ही तैयार हो गई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक ही गाड़ी से मसौढ़ी से पटना आ रहे थे. रास्ता बहुत खराब था, नीतीश कुमार ने इसके बारे में लालू यादव से बात की तब उन्होंने कुछ ऐसी बातें बोली जो नीतीश को काफी चुभ गई. विकास के प्रति लालू यादव के रवैए को देखते हुए नीतीश कुमार नें तभी तय कर लिया कि उनके साथ राजनीति करना संभव नहीं है, और धीरे-धीरे अलग होने का रास्ता तय करना शुरू कर दिया.

दरअसल, पिछड़ा वर्गों के आरक्षण के लिए जिस मंडल कमीशन को लागू कराने का श्रेय लेते हुए लालू यादव वर्ष 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने उसी आरक्षण को लेकर पहले पहल नीतीश और लालू के बीच मतभेद गहराने की बातें कही जाती हैं. 1993 के आते आते ऐसी बातें होने लगी कि लालू कुर्मी-कोईरी समुदाय को ओबीसी से बाहर करने की योजना बना रहे हैं. लालू की यह योजना नीतीश को गवारा नहीं थी. उन्होंने लालू की इस योजना के खिलाफ अपने स्वजातीय कुर्मी नेताओं से बात करनी शुरू कर दी.

लालू यादव को करारा जवाब देने के लिए 12 फरवरी, 1994 को पटना के गांधी मैदान में कुर्मी चेतना महारैली आयोजित करने का प्लान बनाया गया. पूरे बिहार से कुर्मी सहित गैर यादव जातियों के कई अन्य नेता भी मंच पर जुटे. लेकिन नीतीश गायब थे. दरअसल उस समय तक नीतीश ने खुलकर लालू का साथ नहीं छोड़ा था. लालू भी इस रैली पर नजर बनाये हुए थे लेकिन उनकी नजर टिकी थी तो केवल नीतीश कुमार पर. नीतीश अगर उस रैली में जाते तो यह लालू के खिलाफ सीधा विद्रोह था. ऐसे में लालू को उम्मीद थी कि नीतीश उनके खिलाफ नहीं जाएंगे. ऐसा कहा जाता है कि नीतीश भी रैली में शामिल नहीं होना चाहते थे. नीतीश कुमार को इस बात का डर था कि इस रैली में शामिल होने के बाद उन पर एक खास जाति के नेता होने का ठप्पा लग जाएगा . लेकिन पूर्व विधायक सतीश कुमार सिंह के संयोजन में आयोजित कुर्मी चेतना महारैली में नीतीश को लाने के लिए कई नेता सक्रिय थे.

यह भी पढ़े : लालू – तेजस्वी से बिल्कुल अलग हैं तेजप्रताप, नहीं करते धर्म कि राजनीती….

बता दे उस दिन पटना के गाँधी मैदान में पटना के अलावा नीतीश का गढ़ माने जाने वाले नालंदा, बिहारशरीफ, बाढ़, मोकामा टाल के इलाकों से हजारों कुर्मी पहुचें थे. लेकिन नीतीश दोपहर तक मंच से नदारद थे. दरअसल नीतीश कुमार उस दिन विजय कृष्ण के छज्जू बाग स्थित मंत्री आवास पर थे. बता दे विजय कृष्ण का कुछ दिन पहले ही लालू यादव से नोकझोंक हुआ था. वे मंत्रिपद से इस्तीफा दे चुके थे और अब लालू को सबक सिखाने के लिए कुर्मियों को एकजुट करने में लगे थे. इसमें नीतीश कुमार उनके सबसे प्रमुख हथियार के रूप में थे.

वहीं तत्कालीन मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि रैली से पहले ही लालू ने नीतीश को एक संदेश भिजवाया था कि यदि नीतीश उस रैली में गए, तो उनके इस कृत्य को एक विद्रोह की तरह देखा जाएगा. लालू उस रैली अपनी सरकार के विरुद्ध एक षड्यंत्र मान रहे थे. ऐसे अगर नीतीश उसमें भाग लेते हैं, तो यह लालू के खिलाफ एक विश्वासघात कहा जाएगा.

नीतीश दोपहर में तीन बजे के आस-पास चेतना रैली के मंच पर चढ़े. शुरू में लालू पर बिना हमलावर हुए ही नीतीश ने भाषण देना शुरू किया. लेकिन भीड़ को यह गवारा नहीं था. तभी मंच की ओर कुछ लोगों ने चप्पल फेंक दिया. यह नीतीश को साफ इशारा था कि गोलमटोल बोलने से काम नहीं चलेगा. ‘‘भीख नहीं हिस्सेदारी चाहिए’’, ‘‘जो सरकार हमारे हितों को नजरअंदाज करती है, वो सरकार सत्ता में रह नहीं सकती’’. ऐसे जोशीले भाषण के साथ ही नीतीश का यह लालू के खिलाफ पहला सार्वजनिक हुंकार था. और भीड़ नीतीश के लिए जय जयकार कर उठी. इसी के साथ लालू के लिए नीतीश कुमार सबसे बड़े विरोधी बनकर राजनीती में उभरे.

नीतीश अब सारे सीमाएं लांघ चुके थे. लालू फरवरी की उस सर्द शाम में अपने खास साथी की बगावत के सुर को सुन रहे थे. बार बार वे अधिकारियों से पूछ रहे थे कि कि आया जी नीतीशवा… लेकिन नीतीश अब हमेशा के लिए लालू से दूर हो चले थे. साथ ही पिछड़े वर्ग की सभी जातियों को साथ लेकर राजनीति करने की लालू की रणनीति भी जमींदोज हो गई.

संयोग से बाद में विजय कृष्ण जिन्होंने नीतीश कुमार को लालू के खिलाफ संघर्ष करने का साहस दिया वे भी नीतीश के धुर विरोधी हो गए. यहाँ तक कि 2004 लोकसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश को बाढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव भी हराया. वहीं नीतीश 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. अब विजय कृष्ण एक अपराधिक मामले में जेल में हैं और लालू भी लम्बे समय से जेल और कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं. नीतीश अब बिहार के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं. वहीं नीतीश ने भले उस दिन कुर्मी रैली में जाकर लालू के खिलाफ आवाज बुलंद की हो लेकिन आज की तारीख में वे सभी समुदायों में स्वीकारे जाने लगे हैं. औऱ आज के समय में नीतीश लालू के पार्टी के साथ ही गठबंधन करके सत्ता में हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *