अपने ही विधायक को जदयू ने दिया करोड़ों के बालू का ठेका, MLA की सदस्यता हो सकती है रद्द…..

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Patna : बिहार में सुशासन का दावा करने वाली सरकार का एक बड़ा कारनामा सबके सामने आया है. जी हां सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक के फॉर्म को करोड़ों का बालू का ठेका दिया गया है. आरोप ऐसा लगा है कि विधायक को ठेका देने के लिए जमकर धांधली भी की गई है. उधर यह मामला जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन करने का भी बताया जा रहा है. जिस पर विधायक की विधानसभा सदस्यता तक भी खत्म की जा सकती है.

दरअसल मामला बरबीघा के जदयू विधायक सुदर्शन से जुड़ा है. आरोप यह है कि सरकार ने अपने ही विधायक को करोड़ों का बालू ठेका दे दिया है. जदयू विधायक सुदर्शन का प्रतिष्ठान है सुनीला एंड संस फिलिंग स्टेशन. सरकार ने इसी फार्म को लखीसराय जिले में बालू खनन का एक बहुत बड़ा ठेका दे दिया है. सरकारी कागजातों की मानें तो सुनीला एंड संस फिलिंग स्टेशन को लखीसराय जिले में 19 करोड़ से ज्यादा का बालू का ठेका दिया गया है. वही सरकारी कागजातों में ऐसा लिखा है कि इस प्रतिष्ठान के मालिक सुदर्शन कुमार है. वैसे भी सुदर्शन कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने शपथ पत्र में यह जानकारी दी थी कि वे सुनीला एंड संस फीलिंग स्टेशन के मालिक खुद है.

लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस मामले में विधायक सुदर्शन की विधानसभा सदस्यता को खत्म किया जा सकता है. दरअसल यह पूरा मामला लोक प्रतिनिधि कानून के उल्लंघन का है. बता दे कि देश में लागू लोक प्रतिनिधित्व कानून 1991 के अनुसार कोई विधायक किसी तरह का सरकारी ठेका नहीं ले सकता अगर किसी कंपनियां प्रतिष्ठान में उसके 25% से ज्यादा शेयर हैं तो भी उस कंपनी या प्रतिष्ठान के नाम पर किसी भी तरह का सरकारी ठेका नहीं लिया जा सकता. जबकि विधायक सुदर्शन के मामले में जिस प्रतिष्ठान को बालू का ठेका मिला है वह उसके मालिक खुद है.

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इस पूरे विवाद को लेकर जब जनता दल यूनाइटेड के विधायक सुदर्शन से बातचीत की गई तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि यह कंपनी उनके मां के नाम पर है और उनके निधन के बाद से वह इस के प्रोपराइटर है लेकिन उन्होंने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया. उन्होंने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का हवाला भी दिया है. उन्होंने कहा है कि विधायक होने के बाद अगर सरकार के पास तय राशि जमा करवा कॉन्ट्रैक्ट ले रहे हैं तो इसमें गलत क्या है. विधायक ने साथ ही यह भी कहा कि इस नीलामी प्रक्रिया में जो लोग असफल रहे वह बेवजह विवाद खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. तकनीकी परेशानी का हवाला देकर अपनी असफलता को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं.

विधायक ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला देते हुए कहा है कि माइनिंग लीज और कॉन्ट्रैक्ट में फर्क होता है. माइनिंग लीज उस कानून के तहत नहीं आता जिसका हवाला देकर लोग उनके ऊपर तरह-तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी एक पुराने मामले में 2001 के अंदर आदेश देते हुए माइनिंग लीज को इस कानून के दायरे से अलग किया है यह मामला हरियाणा के एक तत्कालीन विधायक से जुड़ा हुआ था.

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