निर्भीक पत्रकारिता के मजबूत स्तंभ अशरफ अस्थानवी को भुलाना है असंभव : सिमाब अख्तर

Desk : पत्रकार हमेशा से समाज का आईना रहा है और सच्चाई के साथ इस आईने के मिजाज को बनाने वाले अशरफ अली असथानवी लोगों को अपनी यादों के सहारे छोड़ कर चले गए. सत्ता से लेकर सामाजिक मुद्दों को बेखौफ आईना दिखाने वाले असस्थानवी की हैसियत ऐसे पत्रकारों में थी. जिन्हें शायद सदियों दुनिया याद रखेगी उर्दू नफ़ाज कमेटी बनाकर उन्होंने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा देश के प्रमुख समाचार पत्रों के साथ-साथ हिंदी पत्रिका ने उनका कॉलम छापा और वह अपनी पहचान बनाते चले गए. उनका असल नाम जियाउल अशरफ था लेकिन वह अशरफ असथानवी से मशहूर हो गए.
उनका जन्म 2 फरवरी 1967 को नालंदा जिला के अस्थावां में हुआ गांव से शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1984 में पटना यूनिवर्सिटी और फिर जामिया उर्दू अलीगढ़ से उच्च शिक्षा ली उनकी पत्रकारिता को इतना सराहा गया कि सरकार की तरफ से उन्हें सम्मानित किया गया. एक रिपोर्टर और संपादक के स्तंभकार के रूप में उनकी पहचान बनी 1984 से 1986 तक दिल्ली कौमी आवास के लिए क्राइम रिपोर्टर रहे. उसके बाद 1993 तक दैनिक कौमी तंजीम के चीफ रिपोर्टर के तौर पर काम किया, चौथी दुनिया में विशेष संवाददाता की भूमिका निभाई. उन्हें पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर लिखने का बहुत शौक था 1998 में सदा ए जर्स के नाम से पहली पुस्तक प्रकाशित हुई और फिर 2002 में दूसरा संस्करण उन्होंने लोगों के सामने पेश किया. फारबिसगंज का सच, अल्पसंख्यक पर हुए अत्याचारों की एक ऐसी कहानी जो 3 जून 2011 को हुई थी.

जिसमें पुलिस द्वारा 5 मुस्लिम युवकों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी इस पर उन्होंने लोगों को वह तस्वीर दिखाई जो शायद किसी ने नहीं देखा होगा उन्हें उर्दू – हिंदी – अंग्रेजी – फारसी और अरबी भाषा पर बहुत मजबूत पकड़ थी, खोजी पत्रकारिता और पुस्तक लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 14 जुलाई 2013 को राजभवन पटना में आयोजित एक समारोह में महामहिम डॉक्टर डी वाई पाटिल के द्वारा मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार प्रदान किया गया. 1995 में गालिब अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अलावा पटना यूनिवर्सिटी के मेंबर रहे.
उर्दू के मशहूर पत्रकार के देहांत पर सियासी हलके में भी मातम छा गया और लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि हिंदी उर्दू पत्रकारिता का चमकता सितारा हमेशा के लिए डूब गया. सकारात्मक सोच के पत्रकार अपनी छाप छोड़ कर चले गए. उनके लिखने का मतलब होता था. अनुसंधान परक निर्भीक पत्रकारिता के मजबूत स्तंभ और कई पुस्तकों के लेखक को लोग बेबाकी के लिए जानते हैं. बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों की कार्रवाई से संबंधित उनकी रिपोर्टिंग बहुत उम्दा होती थी, उर्दू पत्रकारिता को जीतने वाले अशरफ असथानवी लोगों को रोता बिलखते छोड़ कर चले गए लेकिन उन्होंने अपने पीछे कलम की वह धार छोड़ दी. जो आने वाले लोगों के लिए एक नया और तेज रास्ता दिखाने का काम करेगी कभी भी उन्होंने सत्ता से खौफ नहीं खाया और निर्भीक होकर लिखते चले गए उनके निधन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव समेत सियासत के कद्दावर लोगों ने श्रद्धांजलि देते हुए उनकी बेबाक कलम को नमन किया.