आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथाएं….

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Desk: हमारे समाज में अनेक प्रकार के त्योहार और उत्सव मनाया जाते हैं हम इन सभी में बहुत खुशी खुशी भाग भी लेते हैं. पर क्या कभी हमने यह जानने की कोशिश की है कि किसी भी त्योहार के पीछे का कारण क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है? इसकी क्या महत्व हैं? तो चलिए आज की इस पोस्ट में हम रक्षाबंधन के बारे में बात करेंगे.

रक्षाबंधन सुनते ही जैसे हम बचपन में चले जाते हैं. जब हमारे कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बंधी होती थी. सुबह उठकर बहने राखी की थाल सजाया करती थी. भाई बहनों के लिए उपहार का प्रबंधन करने में जुटे रहते थे. शुभ मुहूर्त देखकर सभी बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती थी.उसे टीका लगाती थी और मिठाई खिलाती थी जिसके एवज में भाई बहन की रक्षा का वादा करते और उन्हें एक तोहफा भी देते थे. खैर यह तो हमारी कहानी थी पर इसकी शुरुआत कैसे हुई आज हम आपको बताएंगे और जानेंगे कि इस त्यौहार से जुड़ी क्या कुछ मान्यताएं हैं.

इंद्र और इंद्राणी की राशि
यह कहानी पौराणिक है ऐसा माना जाता है कि एक बार असुरो और देवताओं मैं युद्ध चल रहा था आसुरी शक्तियां काफी मजबूत थी. और उनका युद्ध जीतना एक तरह से तय माना जा रहा था. इंद्र की पत्नी इंद्राणी को अपने पति और देवताओं के राजा इंद्र की काफी चिंता होने लगी. इसलिए उन्होंने पूजा पाठ करके एक अभिमंत्रित रक्षा सूत्र बनाया और उसे इंद्र की कलाई पर बांध दिया. जिसके बाद देवता युद्ध जीत गए और उसी दिन से सावन की पूर्णिमा को रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाने लगा. यह एक इकलौती घटना है जिसमें एक पत्नी ने पति को रक्षा सूत्र बांधा था लेकिन आगे वैदिक काल में यह बदल गया और यह त्यौहार भाई और बहन के रिश्तो में तब्दील हो गया.

यम और यमुना
इस कहानी के अनुसार सूर्य की पुत्री यमुना ने छाया के श्राप से यम को बचाने के लिए उनके कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांधा था. जिस वजह से यम की जान बच गई इसलिए इस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा.

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देवी लक्ष्मी और राजा बलि
इस कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि राजा बलि ने एक वरदान के रूप में भगवान विष्णु को अपने साथ पताल लोक में ही रोक लिया था जिसके बाद देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर उपहार में उनसे अपने स्वामी भगवान विष्णु को वापस बैकुंठधाम भेजने की आज्ञा मांगी थी. तब से रक्षाबंधन के दिन बहन को भाई द्वारा उपहार देने की परंपरा बन गई.

पोरस और एलेग्जेंडर
सिकंदर ने 329 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था लेकिन सिकंदर की पत्नी को पता था कि भारत में पोरस ही एक ऐसा राजा है जिसे सिकंदर बिल्कुल बुरी तरह से हार सकता है. इस वजह से उन्होंने पोरस को राखी भेजी है उसमें अपने पति की जान उपहार में मांगी और पोरस ने भी राखी स्वीकार की और युद्ध में सिकंदर की जान न लेने की कसम खायी थी.

महारानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं
चित्तौड़गढ़ की महारानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से अपने राज्य को बचाने के लिए सम्राट हुमायूं को राखी भेजा और उनसे वह अपनी रक्षा की गुहार लगाई थी. हुमायूं ने भी उनकी राखी को स्वीकार किया और अपने सैनिकों के साथ उनकी रक्षा के लिए चित्तौड़ की ओर रवाना हो गए हालांकि हुमायूं के चित्तौड़ पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने आत्महत्या कर लिया था. इस कहानी में राखी के त्योहार को सभी धर्म और एक सामाजिक त्योहार बना दिया था.

राखी और टैगोर
गुरु रविंद्र नाथ टैगोर हिंदुस्तान की एक तरह से धरोहर है. उन्होंने राखी को लेकर एक नया संदेश दिया था उन्होंने कहा था कि राज्य मनावता के लिए यह एक ऐसा बंधन है जिससे हम एक दूसरे की रक्षा करने का वचन ले सकते हैं. उन्होंने बंगाल में राखी उत्सव का आयोजन भी कराया था, जिसमें सभी एक दूसरे को राखी बांधकर उनकी रक्षा का वचन दे रहे थे.

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