जानिए पुरुष और प्रकृति के मिलन की अनोखी कहानी

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यूं तो शिवरात्रि शिव-पार्वती के विवाह का दिन है परंतु वास्तव में यह पर्व है पुरुष और प्रकृति के मिलन का। पुरुष अर्थात् शिव और प्रकृति साक्षात् पार्वती।

शिव और शिवा दोनों का पार नहीं पाया जा सकता, लेकिन यह भी सच है कि सृष्टि-सृजन और उसके चक्र को चलायमान रखने में दोनों का अहम योगदान है। दोनों में से एक के बिना सृष्टि संचालन थम जाएगा।

बात चाहे सृष्टि निर्माण और उसके संचालन की हो या परिवार की गाड़ी हांकने की, पुरुष और प्रकृति का समान रूप से योगदान देना उतना ही जरूरी है जैसे जीवन में निर्णय लेते वक्त मन और बुद्धि का उपयोग।

शिव – पार्वती के मिलन की कथा

महादेव और माता पार्वती के अनुठे प्रेम की कहानी से पूरा संसार परिचित है मान्यता हैं की महादेव और माता पार्वती के प्रेम के आगे प्रेम की परिभाषा भी छोटी महसूस होने लगती है। हमें कई ऐसे पौराण‍िक क‍िस्‍से भी सुनने को म‍िलते हैं जहां देवी-देवताओं ने स्‍वयं भोलेनाथ के प्रेम के साक्षी बने है। माता पार्वती के लिए वो महादेव का अनंत प्रेम ही होगा जिसकी वजह है क‍ि महादेव ने मां पार्वती को अपने आधे अंग पर स्‍थान द‍िया और स्‍वयं अर्धनारीश्‍वर कहलाए।

अर्धनारीश्वर

क्यों मनाया जाता है महाशिवरात्रि?

तो आज हम जानेंगे महाश‍िवरात्रि के पव‍ित्र मौके पर माता पार्वती और महादेव के प्रेम और उनके व‍िवाह की रोचक कथा…

महादेव और माता पार्वती का दिव्य विवाह आज भी महाशिवरात्रि पर्व के रूप में उतने ही धूम धाम से मनाया जाता है जितना की सदियों पहले. श्रद्धालु और भक्तजन महाशिवरात्रि प्रतीक्षा बेसब्री से करते है. तो आपने माता पार्वती और महादेव की ब्याह की कहानी तो सुनी ही होंगी, कहते है की तीनो लोक से जीव, जंतु, भूत, प्रेत इस विवाह में सम्मिलित हुए थें.

माता पार्वती ने बचपन में ये दृढ संकल्प लें लिया था की अगर वे विवाह करेंगी तो महादेव से ही करंगे अन्यथा नहीं करेंगी. उन्होंने महादेव को अपना पति भी मान लिया था. पर मन में सजाए सपने को हकीकत में बदलने के लिए पार्वती माँ को कई परीक्षा देनी पड़ी थी. पर हर कठिन परीक्षा को पार कर अंततः उन्होंने महादेव का दिल जीत ही लिया. कहते है माता पार्वती के कठिन तप से तीनो लोक में भूचाल आ गया था. और उन के इस प्रेम को देख कर महादेव ने माता को अपने अर्धांगिनी बनाने का निश्चय किया.

महादेव के असीम प्रेम के लिए महलों में पली बढ़ी माँ पार्वती वन में रहने को ख़ुशी ख़ुशी तैयार थी.पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव जब माता पार्वती को ब्‍याहने पहुंचे तो उनके साथ संपूर्ण जगत के भूत-प्रेत थे। इसके अलावा डाकिनियां, शाकिनियां और चुड़ैलें भी शिव जी की बारात में शामिल थीं। महादेव के भस्म और हड्डी के श्रृंगार से सभी दंग रह गए. पर ज़ब निवेदन पर भगवान शिव दूल्हे के रूप में साज श्रृंगार कर आऐ तो सभी मोहित हो गए और ऐसे हुई महादेव और माता पार्वती की अनूठी शादी.

इसी अनूठी शादी को भक्तजन महाशिवरात्रि की तौर पर मनाते है.शिव-पार्वती के विवाह का यह दिन केवल आराधना का ही पर्व नहीं बल्कि यह बात भी समझाता है कि पुरुष और महिला का जीवन में ही नहीं बल्कि सृष्टि में समान अधिकार, वर्चस्व और स्थान है।शिव और शिवा एक-दूसरे से अलग तो हो सकते हैं पर अलग होकर न तो वे सुखी रह सकते हैं और ना ही संतुष्ट भाव से सृष्टि को सुख दे सकते हैं। शायद इसलिए ही शिव-पार्वती की जोड़ी को सबसे आदर्श दांपत्य के रूप में पूजा जाता है।शिव को विश्वास था कि पार्वती के रूप में सती लौटेगी तो पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए तपस्या के रूप में समर्पण का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया।

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